भारतीय संविधान के तहत कैदी भी सही तरीके से जीने का नागरिक अधिकार रखते है। पर दुनियाभर के और जगहों कि तरह भारत में भी कैदी के संबंध में चिंता कम ही कि जाती है| ये मान लिया जाता है कि जेल जाने वाला हर व्यक्ति सजा याफ्ता अपराधी ही है और उसे सजा मिलनी ही चाहिए | परन्तु जेल के कैदियों का बहुत बड़ा हिस्सा उन कैदियों का हैं जिनकी सजा कोर्ट अभी तक तय नहीं कर पाया है| उनमें वे भी है जिनपर पुलिस चार्जशीट दाखिल कर चुकी है और वैसे भी, जिनका चार्जशीट होना अभी बाकि है| भारतीय कोर्ट के विभिन्न निर्देशों से भी ये पाया जाता है कि बेल प्राथमिक अधिकार है और बेल न देना सिर्फ ठोस कारणों पर ही होना चाहिए किन्तु इसका पालन प्रायश नहीं होता है | इस कारण से जेलों में कैदियों कि संख्या लगातार बढ़ रही है और जो सुविधाएँ उनको मिलनी चाहिए, वो उन्हें नहीं मिल पाती है| भारतीय इतिहास भी इससे अछूता नहीं रहा है|
देश के सर्वोच्च न्यायधीश ने अपने एक अभिभाषण में इसका जिक्र करते हुए कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली को प्रभावित करने वाले विचाराधीन कैदियों की उच्च संख्या एक "गंभीर" मुद्दा है| उन्होंने कहा कि देश के 6.10 लाख कैदियों में से करीब 80 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं जो कि आपराधिक न्याय प्रणाली प्रक्रिया में ''एक सजा'' है। ब्रिटिश काल में तो बहुत से आन्दोलनकर्ताओं को जेलों में डाल कर यतनाएं दी जाती थी| जेल लोगों को परेशान करने के लिए बनाए गए विशेष केंद्र के रूप में उभरे और आज भी भारत में उनके बनाए कई जेल कार्यरत है| आजादी के बाद बहुत से बदलाव जरूर हुए पर अपराधी के लिए जेल में पर्याप्त बदलाव नहीं है | जेलों के भीतर कोई व्यक्ति कैसे अपना जीवन व्यतीत करता है, इस बात पर ज्यादातर लोगों में सहानुभूति कि कमी देखी जाती है|
कोरोना काल में भी यह सोच बदली नहीं| कैदियों को उपचार और जेल में जगह का अभाव इस दौरान भी झेलना पड़ा| कैदियों के सम्बन्ध में एक सांप्रतिक अध्ययन तीन राज्यों बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के सम्बन्ध में किया गया। जिसमें कैदियों के स्वास्थ्य पर कोविड -19 के प्रभाव का आँकलन भी किया गया| इस शोध से जुड़े तीन राज्यों की जेलों में चिंता के कुछ क्षेत्रों की पहचान की गई। जो कि मोटे तौर पर बुनियादी सुविधाओं कि कमी, व्यवस्थित ढांचे की कमी, अधिक भीड़भाड़ और योग्य स्वास्थ्य कर्मियों की कमी आदि से संबंधित हैं।
आज सुबह, नालसा ( National Legal Services Authority) द्वारा आयोजित अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) की पहली पहली बैठक में, पीएम ने कानूनी सहायता के अभाव में जेल में बंद विचाराधीन कैदियों पर चिंता व्यक्त करते हुए जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों से जिला स्तरीय विचाराधीन समीक्षा समितियों द्वारा विचाराधीन कैदियों की रिहाई में तेजी लाने का आग्रह किया।[1]
भारतीय जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की संख्या होने से वे एक-दूसरे के निकट संपर्क में रहने को मजबूर है| जिससे एक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा होता है। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की जेलों में कैदियों की संख्या की स्थिति का अंदाजा नीचे दी गई तालिका ए, में दिए गए तथ्यों से लगाया जा सकता है।
राज्य |
कैदी रखने कि क्षमता |
उपस्थित कैदीयों कि संख्या |
क्षमता से अधिक कैदियों की संख्या |
अधिग्रहण दर % |
बिहार |
45,862 |
51,934 |
6,072 |
113.2% |
झारखण्ड |
17,333 |
22,190 |
4,857 |
128.00% |
पश्चिम बंगाल |
21,476 |
25,863 |
4,387 |
120.40% |
भारत |
4,14,033 |
4,88,511 |
74,478 |
118.00% |
टेबल ए - स्रोत: एनसीआरबी; भारत की जेल सांख्यिकी 2020 |
उपरोक्त तालिका में बिहार के आंकड़े सतही तौर यह बताते हैं कि राज्य की जेलों में भीड़भाड़ की समस्या कम है। पर वास्तविकता यह है कि कुछ विशेष जेलों में क्षमता से अधिक कैदी मौजूद है। यह अवस्था महामारी के पहले भी थी|
क्षमता से अधिक कैदी होने का कारण राज्य में शराब बंदी कानून भी हो सकता है| बिहार के 57 जेलों में से 27 जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं| जो कैदियों को अस्वच्छ और अमानवीय परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर करती हैं। बेउर जेल बिहार की सबसे भीड़भाड़ वाली जेलों में से एक है। इसमें लगभग 2200 की क्षमता के मुकाबले 3500 या इससे ऊपर कैदी हैं। यही हाल बाकि सेन्ट्रल जेलों का भी है| जहाँ उनकी क्षमता से 500 या 1000 अधिक कैदी मौजूद है|
NCRB आंकड़ों (2020) के अनुसार पश्चिम बंगाल के सुधार गृहों या जेलों में कैदियों कि अधिकता राष्ट्रीय औसत से अधिक है| पिछले कुछ सालों में राज्य भर से NDPS एक्ट और UAPA एक्ट में बहुत सी गिरफ्तारियों ने कैदियों कि संख्या को बढ़ा दिया है| कुछ डिस्ट्रिक्ट जेलों कि क्षमता सिर्फ 400 -500 होनी चाहिए वहां 1100 -1200 कैदी मौजूद है|
इसी तरह, झारखंड राज्य में सुधार गृहों या जेलों में कैदियों कि अधिकता तो राष्ट्रीय औसत से अधिक है | जहां 17,333 की क्षमता के मुकाबले लगभग 22,190 कैदी हैं। झारखण्ड में भी NDPS एक्ट और इसके साथ ही नक्सलवाद से जुड़े मामले दर्ज किये गये, जो कि जेलों में अधिक कैदियों के होने कि मुख्य वजह है|
मौजूदा बढ़े हुए कैदियों के आंकड़ों को देखने के बाद भी कुछ जानकारों को जेलों और कैदियों के संबंध में दिए गए आंकड़ों की सत्यता पर संदेह है। उदाहरण के लिए, 'कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव' (सीएचआरआई) की रिपोर्ट - 'स्टेट/यूटी वाइज प्रिज़न्स रिस्पांस टू कोविड-19 पैन्डेमिक इन इंडिया' ने प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स इंडिया, 2019/20 को 'भ्रामक' करार दिया है क्योंकि यह सही संख्या को नहीं दर्शाता है। उनके अनुसार भारत के सभी 1350 जेलों में क्षमता से अधिक कैदी मौजूद है।
भारतीय जेलों में क्षमता से अधिक कैदीयों के साथ-साथ मेडिकल लापरवाही एक और गंभीर समस्या है। एनसीआरबी की सांख्यिकी रिपोर्ट (2020) के अनुसार जेलों में कुल 1887 मौतें हुई जिनमें से विभिन्न बीमारियों जैसे हृदय, फेफड़े, यकृत और गुर्दे से संबंधित बीमारियों के साथ-साथ तपेदिक और कैंसर आदि से कुल 1542 कैदियों की मृत्यु हुई। इस रिपोर्ट में देखने वाली एक और बात ये भी है कि भारतीय जेलों में कुल बजट का सिर्फ 4.5 % ही स्वास्थ्य पर खर्च किया गया है| भारतीय जेलों में योग्य स्वास्थ्य कर्मियों की कमी के कारण समस्या विकट हो जाती है। जिसे तालिका बी में व्यापक रूप से दर्शाया गया है।
टेबल बी - 2020 में 3 राज्यों के मेडिकल स्टाफ |
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राज्य |
सुधारक कर्मचारी: चिकित्सक / मनोचिकित्सक |
रेसिडेंट चिकित्सा अधिकारी |
फार्मासिस्ट |
लैब तकनीशियन / लैब अटेंडेंट |
अन्य |
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|
स्वीकृत |
वास्तविक |
स्वीकृत |
वास्तविक |
स्वीकृत |
वास्तविक |
स्वीकृत |
वास्तविक |
स्वीकृत |
वास्तविक |
बिहार |
0 |
0 |
226 |
167 |
106 |
82 |
16 |
0 |
107 |
93 |
झारखण्ड |
0 |
0 |
48 |
11 |
15 |
11 |
4 |
3 |
124 |
53 |
पश्चिम बंगाल |
8 |
3 |
39 |
35 |
41 |
41 |
0 |
0 |
11 |
2 |
स्रोत: एनसीआरबी; भारत की जेल सांख्यिकी 2020 |
जैसा कि ऊपर बताया गया है सुविधाओं के आभाव में जेलों के अंदर अत्यधिक भीड़ और स्वास्थ्य कर्मियों की कमी आदि ने कैदियों को कोविड – 19 के कारण अधिक संवेदनशील बना दिया है। सीएचआरआई नामक एनजीओ की एक रिपोर्ट ने 'भारत की जेलों में कोविड -19 की स्थिति' दिखने कि कोशिश कि और निष्कर्ष निकाला कि भारत के सभी 1,350 जेलों से कोविड -19 संक्रमणों की सूचना दी गई है। सीएचआरआई की रिपोर्ट - 'स्टेट/यूटी वाइज प्रिज़न्स रिस्पांस टू कोविड-19 महामारी इन इंडिया' शीर्षक से कहा गया है कि कोविड -19 कि दूसरी लहर में 1 मार्च 2021 से लेकर अब तक जेल कर्मचारियों और कैदियों दोनों को मिलकर कुल 6,606 कोविड -19 के सकारात्मक मामले दर्ज किए गए और भारतीय जेलों में कुल 34 मौतें हुईं। भारतीय जेलों में कोविड -19 संक्रमण की स्थिति को नीचे तालिका C में दर्शाया गया है।
जेल में कोविड – 19 संक्रमण |
||
राज्य |
कोविड के मामलों की संख्या, अकटूबर, 2020 |
कोविड के मामलों की संख्या, मार्च, 2021 से अब तक |
बिहार |
323 |
86 |
झारखण्ड |
638 |
264 |
पश्चिम बंगाल |
265 |
|
भारत |
18157 |
6606 |
टेबल सी - स्रोत: सीएचआरआई रिपोर्ट - 2020/ 2021 |
जेलों में कोरोनो वायरस के प्रसार के कारण, 23 मार्च, 2020 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य / केंद्र शासित प्रदेशों को एक उच्चाधिकार समिति गठित करने का निर्देश दिया| जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों को स्थानांतरित करके भीड़भाड़ वाली जेलों कि संख्या कम करने के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया।
इन हाई पावर कमेटियों को यह निर्धारित करने का अधिकार था कि किस वर्ग के कैदियों को जिसे उचित समझा जा सकता है, पैरोल पर या अंतरिम जमानत पर एक अवधि के लिए रिहा किया जा सकता है। इन निर्देशों का पालन करते हुए, महामारी को नियंत्रित करने के लिए अलग-अलग राज्यों ने अलग-अलग उपाय किए:
बिहार जेल विभाग ने तो भीड़भाड़ का मुकाबला करने और सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए एक कदम के रूप आगंतुकों और रिश्तेदारों पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि जेल अधिकारी और कैदी इस फैसले को सही नहीं मानते| इंटरव्यू के दौरान एक जेल अधिकारी ने बताया कि इस दौरान कैदियों में अपने भविष्य को लेकर अधिक चिंताएं उभरी और उनके परिवारों के खोज- खबर न मिल पाने कि वजह से वो मानसिक रूप से अधिक परेशान हुए|
बिहार के ही एक अन्य जेल अधिकारी किसी परिवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (ई – मुलाकाती) के बारे में बता रहे थे जिस दौरान ये साफ समझ जा सकता था कि कोई आम इंसान उसे ठीक से बिना किसी मदद के कर ही नहीं सकता था| बहुत से कैदी ऐसे गरीब परिवार थे जिनके घरों में बेसिक फोन भी नहीं था कि वो अपने परिवारों कि खोज- खबर ले पाते| उन्होंने किसी भी बातचित के लिए अपने पड़ोसियों के नंबर रखे हुए थे | एक अन्य जेल कि महिला वाड में खत लिखने तक को कागज- कलम नहीं थे जहां वे महिलायें अधिक व्यथित थी|
झारखंड ने भीड़भाड़ वाली जेलों से कैदियों को अन्य जेलों में जहां कैदियों की संख्या कम है स्थानांतरित करके जेल में भीड़भाड़ कम करने के उपाय किए। यहाँ भी आगंतुकों पर और रिश्तेदारों पर प्रतिबंध लगा दिया।
पश्चिम बंगाल में, कैदियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उनकी न्यायिक सुनवाई के लिए पेश किया गया था। जेल अधिकारियों से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि कोविड के प्रभाव को देखते हुए हर कैदी के परिवार से केवल एक सदस्य को मिलने कि अनुमति दी गई| उनका मानना था कि जेलों मे अक्सर कैदी मानसिक विकार के शिकार हो जाते है| ऐसे मे परिवारों से साप्ताहिक रूप से मिलन उनकी मानसिक स्तिथि को बनाए रखने में मदद करता है जिसे पूरी तरह बंद कर देने से उनका ज्यादा नुकसान होता| इंटरव्यू के दौरान इस बात पुष्टि संबंधित परिवारों ने भी कि थी|
इन राज्यों में जेल परिसर के भीतर मल्टीविटामिन और इम्युनिटी बूस्टर ड्रिंक की आपूर्ति, विकसित आइसोलेशन वार्ड में अनुबंधित लोगों को तुरंत अलग करने, संक्रमित रोगियों के इलाज के लिए जेल में प्रोफिलैक्सिस, जिंक, विटामिन सी और विटामिन डी की गोलियां पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता सुनिश्चित की गई। कैदियों के बीच दहशत को रोकने के लिए, जेल प्रशासन को परामर्शदाताओं के लिए काउंसलिंग शुरू करने के लिए कहा गया है ।[2]
कैदी की रिहाई: सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च 2020 के आदेश में एचपीसी को सुझाव दिया कि रिहाई के लिए 7 साल या उससे कम की सजा काट रहे कैदियों पर विचार किया जा सकता है। जिसे देखते हुए महामारी कि पहली लहर में बिहार सरकार ने हाई कोर्ट को सूचित किया कि वो कैदियों को कम भीड़ वाली जेलों में शिफ्ट करेंगे क्योंकि उनके पास बहुत ज्यादा कैदी नहीं जिन्हें रिहाई या पेरोल दी जा सकती है| इस दौरान बिहार में केवल 414 (बिहार SLSA) कैदियों को रिहाई दी गई थी| झारखण्ड में 869 (झारखण्ड SLSA) तथा पश्चिम बंगाल में 2209 (पश्चिम बंगाल SLSA) कैदियों को रिहा किया गया था|
दूसरी लहर के दौरान इन तीन राज्यों में बिहार कैदियों कि रिहारी में सबसे ऊपर था और जून 2021 तक, अलग – अलग धाराओं सहित कुल 16,864 कैदियों को रिहा किया गया था| इसी दौरान झारखण्ड में 1289 कैदी रिहा किये गये और पश्चिम बंगाल का नया डाटा उपलब्ध नहीं है|
कोविड -19 महामारी ने भारत की जेलों में प्रणालीगत रूप में जेल प्रशासन में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया है। कोरोनोवायरस महामारी ने भारत की जेलों में भीड़भाड़, स्वच्छता, स्वास्थ्य सम्बन्धी बुनियादी सुविधाओं की अपर्याप्तता जैसी समस्याओं का सामना किया है। महामारी ने फिर से जेल सुधार की तत्काल आवश्यकता का आह्वान किया है। न केवल जगह की कमी है, बल्कि अन्य बुनियादी सुविधाओं जैसे स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे, स्वच्छता, बिस्तर इत्यादि में एक अंतर देखा जा सकता है| इसके साथ ही कैदियों के लिए कोई बड़ा जागरूकता अभियान नहीं है, इसे जेलों द्वारा स्थानीय गैर सरकारी संगठनों की मदद से या उनकी क्षमता के रूप में शुरू किया जाना चाहिए।
यह लेख पूर्व PPF के प्रकाशित आर्टिकल कि बुनियाद के साथ नए तथ्यों और आकड़ों पर आधारित है|
[1] https://hindi.livelaw.in/category/news-updates/undertrial-realese-speedy-prime-minister-narendra-modi-district-legal-services-authorities-nalsa-205229
[2] Shortage of medical staff puts Indian prisoners at high risk of covid-19
Updated: 20 Jul 2020, 08:11 PM IST https://www.livemint.com/news/india/shortage-of-medical-staff-puts-indian-prisoners-at-high-risk-of-covid-19-11595248789662.html