आधी आबादी, प्रशासन, न्यायालय और देश

Teacher

Pooja Kumari

Chief Coordinator cum Researcher, PPF

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो कि रिपोर्ट बताती है की 2021 में रेप के 31,677 मामले दर्ज किए जो कि औसतन 86 दैनिक है| सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में महिलाओं के खिलाफ अपराध का खतरा ज्यादा है | जहाँ महिलाओं के लिए परिवहन और सार्वजनिक सेवा संगठन में असुरक्षा कि भावना इन सुविधाओं तक उनकी पहुंच और उपयोग को भी सीमित करती है|

निर्भया केस सर्वविदित है, इसको हुए दस साल से ऊपर हो गये है जिसके बाद रेप पर बने कानूनों को कठोर किया गया और साथ ही बच्चो से जुड़े पोक्सो एक्ट को आये भी अब दस साल पूरे हो गये है | गंभीर अपराधों के लिए कड़े कानूनों को लाने के बाद भी हर रोज महिलाओं और बच्चो के साथ हिंसा घटने का नाम नहीं ले रही है|

इस परिस्थिति में देश के अलग - अलग राज्यों में रेप जैसे गंभीर अपराधों में सजा पा चुके लोगों का अनायास जेलों से निकल पाना चिंताजनक है| महिलाओं के प्रति लगातार बढ़ते अपराधों के बीच देश कि शीर्ष अदालतों के कुछ ताज़ा निर्णयों ने महिलाओं के बीच असहजता और समाज में वाद – विवाद को जन्म दिया है| कुछ केसों के हालिया निर्णयों पर एक नजर डालने पर वर्तमान विवाद को आसानी से समझा जा सकता है: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने चार साल की बच्ची के साथ बलात्कार के एक दोषी कि उम्रकैद को कम कर दिया| संवाद पत्रों के अनुसार कोर्ट ने 27 अक्टूबर, 2022 को फैसले में संशोधन करते हुए कहा कि "आरोपी बच्ची को जिंदा छोड़ने के लिए काफी दयालु था " एक अनजाने में हुई गलती थी। कोर्ट कि टिप्पणी से कुछ विवाद पैदा हुआ क्योंकि ऐसे बयान सामाजिक स्तर पर अनुचित लगते है |

 

साल 2012 में दिल्ली कि एक लड़की (19) के अपहरण, रेप और हत्या के केस को निचली अदालत ने 'दुर्लभ से दुर्लभ' श्रेणी में रखते हुए तीन आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी। कोर्ट के अनुसार वे सभी आरोपी "शिकारी" थे और "शिकार की तलाश में सड़कों पर घूम रहे थे"। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने नवम्बर, 2022 को उन तीन दोषियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया| सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय हैरान करने वाला है  क्यूंकि निचली अदालतों द्वारा आरोपियों को मौत कि सजा दी गई थी| सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत  जस्टिस यूयू ललित ने एक न्यूज़ पोर्टल में दिए इंटरव्यू में कहा, ‘सरकमस्टेंशियल एविडेंस के आधार पर इन तीनों व्यक्तियों को मृत्युदंड मिला | इस मामले में तथ्य इतने स्पष्ट नहीं दिखाई दिए| अगर सबूत पुख्ता नहीं है तो सिर्फ इसलिए मौत की सजा देना क्योंकि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने ऐसा किया है तो फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में क्यों आए?

यहाँ पर कई सवाल उठते हैं| अगर इस केस के आरोपी जो भारत के नागरिक है वो निर्दोष है तो उनके नागरिक अधिकार देखते हुए क्या इन्हें जेल भेजने वालों पर कोई कार्यवाही हुई ? जो लोग पिछले दस सालों से जेल में रहे, उनकी जिंदगी के ये दस साल जेल में बिताने कि जिम्मेदारी किसकी बनती है और इसका खामियाजा कौन देगा ? क्या इस सन्दर्भ में निचली अदालतों और तमाम जाँच एजेंसियों कि छानबीन पर सवाल नहीं बनता है ? सजा के लिए असली जिम्मेदार फिर कौन है? और उनको क्यूँ नहीं पकड़ा गया ? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुलिस और बाकि कि एजेंसियों को क्या निर्देश है जिन्होंने सबूत और जाँच कार्य में लापरवाहियां दिखाई? क्या कोर्ट के दायरे में लापरवाही बरतने वालों के लिए सजा का प्रावधान नहीं आता?

 

2002, बिलकिस बानो गैंगरेप केस में दोषियों को 2017 में मुंबई हाई कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास कि सजा मिली थी| लेकिन गुजरात सरकार द्वारा गठित एक पैनल द्वारा आरोपियों को अगस्त, 2022 में जेल से रिहा कर दिया गया| आरोपियों के जेल से बाहर आने पर उनका स्वागत माला पहना कर किया गया मानो, वो कोई बड़ा काम करके आये हो| किसी रेप के आरोपी का स्वागत करना शायद सामाजिक गिरावट का द्योतक है| जहां आधी आबादी के साथ दुर्व्यवहार करने वालों का कुछ लोग उल्लास के साथ समर्थन कर रहे हैं,  इस घटना से स्पष्ट है कि हम न केवल सामाजिक रूप से अपनी दिशा से  भटक रहे हैं परन्तु जघन्य अपराधों का परोक्ष अनुमोदन भी कर रहे हैं| ऐसी घटनाएँ पीड़ित परिवार के साथ – साथ अन्य नागरिको के भीतर भी डर और  हताशा पैदा करती है जो अपेक्षित नहीं है| इसके विपरीत हैदराबाद (2019) एक वर्षीय पशु चिकित्सक के सामूहिक बलात्कार और हत्या में चार संदिग्धों का एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम का  समाज के लोगों ने फूलों से अभिनन्दन किया था|  

कोर्ट द्वारा दिए कुछ निर्णयों ने जिसकी चर्चा ऊपर कि गई है, एक धुंधलापन बढ़ाया है| इन मामलों पर आए फैसलों का प्रभाव न केवल कोर्ट में लंबित रेप के अन्य मामलों को प्रभावित करेगा बल्कि अपराधी तत्वों को हौसला भी देगा| यह व्यक्तिगत रूप से हर महिला के सम्मान को भी ठेस पहुंचाता है| इन पर सामाजिक या न्यायिक चुप्पी आने वाली पीढ़ियों को सही राह से भटका सकता है| न ये रेप के पहले मामले है और न ही शायद आखिरी| लेकिन अपराधियों के प्रति अभी का सामाजिक व्यवहार और निरापराधियों का जेल जाना ये सोचने पर मजबूर करता है कि क्या अपराधिक न्याय प्रणाली सही दिशा में जा रही हैं?

वैसे हमारा समाज स्थिरता और समावेशिता का समर्थन करता है, लेकिन महिलाएं और लड़कियां अभी भी असुरक्षा का अनुभव करती हैं जो उनके मानसिक विकास को भी प्रभावित कर सकता है। इस सन्दर्भ में कुछ दिन पहले महिलाओं के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के मंतव्य का आशय है, कि महिलाएं व्यक्तिगत रूप से अपने बारे में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है जिसका सम्मान होना जरुरी है| अतः ऐसी स्थितियाँ और भौतिक वातावरण बनाने की आवश्यकता है जहाँ डर के बिना महिलाएं, पुरुष, लड़कियां और लड़के एक साथ रह सके| यह कठिन कार्य नहीं है किन्तु  कानून अकेला महिलाओं कि सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता| इसके लिए समाज को महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने वाले नजरिए और नीति - निर्माताओं पर दबाव डालने कि जरूरत हैं।

 

रेफरेंस:

[1]https://www.livelaw.in/news-updates/mp-high-court-reduces-rape-convicts-sentence-considering-he-had-left-minor-victim-alive-212320

[2] https://www.firstpost.com/india/chhawala-rape-case-supreme-court-acquits-three-convicts-who-were-awarded-death-penalty-11582611.html

[3] https://hindi.theprint.in/india/former-cji-lalit-said-on-chhawla-rape-case-circumstantial-evidence-is-not-enough/424339/

[4] https://www.punekarnews.in/hyderabad-four-men-arrested-for-gangrape-and-murder-of-dr-priyanka-reddy/

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