भारत जैसे लचर-चिकित्सा वालें देश में लॉकडाउन बेहद जरूरी कदम था, लेकिन साथ ही एक बड़ी आबादी को बिना किसी तैयारी के जैसे मानों दोहरी आग में झोंक दिया गया है| मार्च 24, 2020 से राष्ट्रीय लॉकडाउन की घोषणा के साथ देश ने एक नई समस्या देखी जिसमें लाखों किसानों और मजदूरों पर अचानक से दोहरी मार पड़ी| बिना भविष्य की कल्पना के इस घोषणा ने एक दम से उनका जीवन ठप कर दिया, आगे क्या होगा इसकी सोच ने उनको इतना प्रभावित किया की देशभर से हजारों मजदूर परिवार सहित सड़कों पर आ गए| उनके लिए ये महज एक बीमारी का खौफ मात्र नहीं था, बल्कि अपने परिवार को पालने की जिम्मेदारी भी थी| जिस शहर में पानी तक बंद बोतलों में बिकती है उस माहौल में बिना काम और आमदनी के एक किराये के मकान में वो भला कैसे रहने की सोच सकता था!
इस वर्ग ने अचानक सब कुछ ठप हो जाने के माहौल से लड़ने की ठानी और निकाल पड़ा पैदल ही अपने घर की ओर, मीलों का सफर उसे डरा नहीं सकता था जितना इस बात ने डराया की वो अपने परिवार को क्या खिलाएगा ? इस सवाल का उसके पास केवल एक जवाब था की वो और उसका परिवार अपने गाँव जाकर कम-से-कम भूख से नहीं मरेगा| बस इसी एक सोच ने उसे मीलों के सफर के लिए तैयार कर दिया था, कोई भी उसकि इस हिम्मत की उम्मीद नहीं कर पाया था की इतना बड़ा वर्ग अचानक से सड़कों के जरिएं यूं बेखौफ निकाल पड़ेगा| सिर्फ दिल्ली में लोगों की भीड़ नोएडा से लगी सड़कों पर कारीब 20-30 हजार के पास थी| गांवों से आयें वो बच्चे भी शामिल थे जिन्हे भूख की आग ने शहर की ओर मोड दिया था रोजगार के लिए महज 15-16 साल की उम्र में भी| सरकारें इसके लिए तैयार नहीं थी जबकि उन्होंने जो घोषणा की, उनमें इनके लिए कोई जिक्र नहीं था और इस बात ने इन सबकों परेशानी में ला दिया|
वहीं तमाम शहरी सरकारें इनलोगों को ये भरोसा दिलाने में असफल रही की इस मुसीबत की घड़ी में हम आप लोगों को संभाल लेंगे | इस कदर अचानक बंद होकर देश की हर आधुनिक तकनीक उनके लिए बेमानी हो गई और विकास के पर्याय माने जाने वाले संसाधन उनके किसी काम नहीं आई | आजाद भारत ने इतनी बड़ी संख्या में पहली बार सड़कों पर जो देखा वो था इनका अपना बेखौफ हौसला|
ये कहा जा सकता है कि:
“रोटी, कपड़ा, मकान नहीं हैं साथ में
है तो सिर्फ एक हौसला,
घर पहुँचने का
अपने घर”
इन मजदूरों के सड़कों पर आने के बाद कई जगहों पर इनके घर जाने के लिए बसों की व्यवस्था की गई, मगर फिर दो दिन में ही उन्हें बंद कर इन लोगों को सड़कों से हटा कर शेल्टर होम, स्कूलों आदि के अंदर तत्काल रहने और खाने की व्यवस्था की गई| इसके बावजूद उनके मन की शंका बनी रही, दिल्ली में ही बहुत सी जगहों पर बेवक्त और खराब खाने की शिकायत आने लगी|
बीते दिनों में बहुत से लोग जिन्होनें ये पलायन जारी रखा उनमें से कई लोगों की मौत की घटनाए सामने आ रही है जिसकी एक बड़ी वजह भूख, थकान और बिना किसी सुविधा के लगातार धूप में चलना रही है, ताज़ा घटना एक 12 साल की बच्ची की मौत का है जो अपने परिवार के साथ तीन दिन से पैदल चल रही थी|
शहरों में फंसे हुए बहुत से लोगों के पास राशन कार्ड नहीं था ऐसे में ये लोग मुफ़्त या बेहद कम कीमत में राशन वाली घोषणा में नहीं आये, जबकि ऐसी व्यवस्था हो सकती थी कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं है, उन्हे भी राशन दिया जाए| दिल्ली में ‘रोज़ी रोटी अधिकार अभियान’ द्वारा किये एक सर्वेक्षण से पता चला है कि दिल्ली में कई राशन की दुकानें बंद हैं, स्टॉक से बाहर हैं या ऑनलाइन डेटा की आपूर्ति के बावजूद राशन वितरित नहीं कर रहे हैं।
इन बातों के सामने आने के बाद कुछ ऊपाय किये गए और जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में राहत कार्यक्रमों का जवाब देते वक्त केंद्र द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों का ‘इंडिया टुडे’ द्वारा किये गए विश्लेषण से पता चला कि 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में, गैर सरकारी संगठनों ने राज्य सरकारों की तुलना में को मुफ्त भोजन प्रदान करने में बेहतर प्रदर्शन किया। इनमें से अधिकांश प्रवासी मजदूरों और गरीबों को मुहैया कराए गए थे, जो की लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुए हैं। इसमें महाराष्ट्र सबसे अच्छे उदाहरणों में से एक है जहां 4.47 लाख लोग, जो राज्य में राहत या आश्रय घरों में हैं, 83.56 % गैर-सरकारी संगठनों द्वारा स्थापित शिविरों में हैं। वहीं हरियाणा और दिल्ली की सरकारें लोगों को भोजन उपलब्ध कराने में सबसे अधिक सक्रिय थीं। कुल मिलाकर, नौ राज्य और केंद्रशासित प्रदेश थे, जहां गैर-सरकारी संगठनों ने 75 % से अधिक लोगों को खाना खिलाया था।
‘जन साहस नामक’ गैर सरकारी संस्था ने अपने द्वारा कीये गए सर्वे में बेहद भयानक आकड़े प्रस्तुत किये है| निर्माण क्षेत्र से जुड़े करीब 3,196 लोगों में से 94 % श्रमिको के पास श्रमिक - पहचान पत्र नहीं है| लगभग 17 % ऐसे है जिनके पास बैंक में खाते भी नहीं है, ऐसे में सरकार द्वारा दिए जा रहें राहत का भी इनकों मिलने का आसार बेहद कम है|
इसी बीच सूरत में अप्रैल 10, 2020 को रात के वक्त मजदूरों ने सड़कों पर लॉकडाउन, वेतन और खाना न मिलने के कारण अपने घरों को लौटने के लिए इस आगजनी कर दी, पुलिस को मजबूरन उनमें से काइयों को जेल में डालना पड़ा| तो वही दूसरी ओर मुंबई में बांद्रा स्टेशन पर सैकड़ों भीड़ जमा हो गई घर जाने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाए जाने कि अफवाह के कारण और जिसको काबू में करने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा | इस स्तिथि में जहां कोई और इनकी मदद नहीं कर सकता था, वहाँ में ये जरूरी हो जाता है की सरकारों को इन चुनौतियों से निपटने के लिए दोहरी भूमिका में आना होगा| जहां भी इन मजदूरों को रोक कर क्वारंटाइन किया गया है वहाँ की हालत बिना सोची समझी निति का नतीजा दिखता है|
हाल फिलहाल में आई कई रिपोर्ट्स चिंता को लगातार बढ़ा रही है कि भारत कोरोना से न केवल चिकित्सा स्तर पर बल्कि भुखमरी और बेरोजगारी के रास्ते पर भी धराशाई होता दिख रहा है| एक ओर ‘आईएएनएस सी-वोटर कोवि ट्रैकर्स इंडेक्स ऑफ पैनिक’ द्वारा किये गए सर्वे में ये बात सामने आई है कि देश में विभिन्न सामाजिक- समूहों, आय, आयु, शिक्षा, धर्म और जेंडर के 62.5 % लोगों के पास राशन/दवा आदि या इन जरूरी चीजों के लिए धन तीन हफ्ते से कम के लिए ही बचा है। कुल 37.5 % लोग ही तीन हफ्ते से अधिक समय के लिए इन आवश्यक चीजों के लिए तैयार हैं। साथ ही ये बात भी सामने आई है कि कम आय वर्ग और समाज के निचले तबके से जुड़े लोगों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं है|
वहीं दूसरी ओर एक अन्य रिपोर्ट जो ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ ने जारी की है, जिसमें ये बात सामने आई है की पहली बार भारत में बेरोज़गारी 23 % हो गई है, कोरोना वायरस के संक्रमण और लॉकडाउन से पहले देश में आठ प्रतिशत बेरोज़गारी दर थी| पहले करीब 40 करोड़ भारतीय किसी ना किसी रोज़गार में थे और तीन करोड़ बेरोज़गार थे| अब ये घटकर 28 करोड़ तक पहुँच गया है और 12 करोड़ लोगों का रोज़गार एक झटके में चला गया, जबकि ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया जहां एक झटके में इतनी बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हो|
दूसरी ओर है देश के किसान जिनकी गेहूँ की फसल खेतों में बिना कटे है, उनकी प्रमुख समस्या अपनी मेहनत कि फसल को सही तरीके से घर तक लाना है| हालांकि उनके फसल की कटाई के लिए संतुलित दूरी बना कर काम की छूट दी गई है मगर बहुत सी जगहों पर ये नहीं हो पा रहा है| एक अनुमान के तहत अगर इसे ठीक से नहीं देखा गया तो कोरोना संकट के बाद देश में बड़े पैमाने पर भुखमरी और बेरोजगारी आने वाली है| बीते दिनों देश के कई भागों में बारिश और ओले पड़ने की घटनओं ने इस क्षेत्र में भारी क्षति पहुंचाईं है, हर किसान और मजदूर सरकार द्वारा दी जा रही राहत में कवर नहीं होता है इसलिए भी ये बड़ी चिंता का विषय हैं|
किसानों के लाखों टन अनाज एवं सब्जिया खेतों में है तो वहीं सरकारी अनाज मंडियों तथा गोदामों में है जिनपर परिवहन पर लगी रोक का असर साफ दिख रहा है| किसान उन्हे शहरों में नहीं भेज पा रहा, जिसका एक असर अब शरही मंडियों में सामानों की होती कमी के रूप में भी दिखने लगा है| लॉकडाउन के बाद हमें आर्थिक स्तर पर इन सबसे निपटने का बेहतर ऊपाय करना होगा वरना भारत फिर से 40 साल पुराने भुखमरी के दौर में जा सकता है|